भविष्य मालिका की दिव्य वाणी हमें भयभीत करने हेतु नहीं रची गई है अपितु हमें सचेत करने, जाग्रुत करने, सत्य के पथ पे चलने और स्वयं का धर्म बल तथा पुण्य बल बढ़ाने हेतु रची गई है l स्वयं जगन्नाथ प्रभु ने लगभग ६०० वर्ष पूर्व पंच सखाओं द्वारा भविष्य मालिका की रचना करवाई है l भविष्य मालिका में आने वाले विपत्ति से भरे समय, के बारे में कई गुप्त तथ्य दिये गए हैं जिसमें एक मात्र समाधान स्वरूप दिव्य “माधव” नाम का जप भी शामिल हैl
माधव नाम जप ही क्यों?
भविष्य मालिका के अनुसार कल्कि अवतार के आगमन पर समाज में व्याप्त अधर्म, पाप और अराजकता का नाश होगा, और सत्य, धर्म एवं न्याय की पुनः स्थापना होगी। उस समय भगवान माधव के रूप में अवतरित होकर धर्म की रक्षा करेंगे।
शास्त्रों में माँ भगवती और श्रीकृष्ण के संवाद का उल्लेख मिलता है। द्वापर युग में, जब भगवान धर्म की रक्षा के लिए धरती पर अवतरित हुए, तब माता योगमाया की इच्छा थी कि उनका नामकरण "माधव" किया जाए, किंतु कृष्ण रखा गया। जब माता ने इस विषय पर भगवान से प्रश्न किया, तब उन्होंने उत्तर दिया कि जब वे कलियुग के अंत में कल्कि अवतार के रूप में प्रकट होंगे, तब वे "माधव" कहलाएंगे और वही उनकी पहचान होगी तथा उसी रूप में जिवों का उद्धार भी करेंगे।
यह भी ध्यान देने योग्य है कि माता कुंती, द्रौपदी और उनके प्रिय सखा अर्जुन उन्हें "माधव" कहकर संबोधित करते थे, जबकि उन्हें "कृष्ण" केहकर पुकारा जाता था।
नाम-जप के महत्व के प्रमाण पुराणों और शास्त्रों में
नाम-जप का अत्यंत महत्त्व है, यह नवधा भक्ति का एक अंग है और इसे सभी ग्रंथों, पुराणों में श्रेष्ठ साधना बतायी गई है।
रामचरितमानस से वर्णन
"कलियुग केवल नाम अधारा, सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा।" - तुलसीदास, रामचरितमानस
तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस में बताया गया है कि कलियुग में भगवान के दिव्य नाम का जाप ही जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति का सबसे सरल और प्रभावी मार्ग है। इस युग में तप, योग और अन्य कठिन साधन पहले की तुलना में कम प्रभावशाली हैं, जबकि प्रभु के नाम का जाप सबसे श्रेष्ठ साधन है।
भागवत महापुराण से वर्णन
“सांकेत्यं पारिहास्यं वा स्तोभं हेलनमेव वा l
वैकुण्ठ-नाम-ग्रहणमशेषाघहरं विदुः” - श्रीमद्भगवद् महापुराण के स्कंद 6, अध्याय 2, श्लोक 14
अर्थात, जो मनुष्य भगवान का पवित्र नाम जपता है, वह असीमित पापों के फल से तुरंत मुक्त हो जाता है, चाहे वह इसे अप्रत्यक्ष रूप से, मज़ाक में, संगीतमय मनोरंजन के लिए या उपेक्षापूर्वक ही क्यों न जपे। इस तथ्य को शास्त्रों के सभी विद्वानों ने भी स्वीकार किया है।
चैतन्य चरितामृत से वर्णन
“तारा मध्ये सर्वश्रेष्ठ नाम-संकीर्तन
निरापरधे नाम लेले पय प्रेम-धन” - चैतन्य चरितामृत, अन्त्य लीला, 4.71
अर्थात भगवान के पवित्र नाम का निरंतर जप करना भक्ति की नौ प्रक्रियाओं में सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया है l जो मनुष्य किसी भी प्रकार का अपराध नहीं करता है और जप करते रहता है वह सरलता से प्रभु के दिव्य प्रेम स्वरूप धन को प्राप्त कर लेता है l

इस समय का सर्वोच्च नाम “माधव” है
भविष्य मालिका के एक श्लोक में वर्णन है कि -
“अष्ट बाहु रे जे अष्ट आयुध,
कलि शेषे जनम हेबे माधब।
माधब नाम कु जेहुं जपइ,
जनम मरण त ताहार नाहिं”। - भविष्य मालिका
पँचसखा अपने मालिका ग्रंथ के श्लोक में लिखते हैं कि भगवान महाविष्णु आठ बाहुओं में, आठ आयुधों को पकड़ धरती पर 'माधव' नाम से कल्कि अवतार धारण करेंगे कलियुग के अंत में यानी वर्तमान समय में। आगे ऐसा लिखते हैं कि जो भी “माधव” का निरंतर जप करेंगे कलियुग और सत्ययुग के वर्तमान संधिकाल में वे जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति प्राप्त कर परम पद पाएंगे।
भविष्य मालिका में कौनसे नाम को एकाक्षर मंत्र बताया गया है?
भविष्य मालिका के अनुसार “माधव” ही ब्रह्म एकाक्षर है और इसका प्रमाण हमें भविष्य मालिका में श्लोकों द्वारा प्राप्त होता है।
भविष्य मालिका से कुछ श्लोक
“तेणु दुइ एक रूप हुअन्ति, एकभाब अटे युगळ मूर्ति।
येउँ राध्का श्रीकृष्ण साङ्गरे, भोळ होइथाइ सबुकाळरे ।” - भविष्य मालिका
उपरोक्त श्लोक का अर्थ है, ‘राधा कृष्ण दो नहीं एक रूप ही हैं, और दोनो एक साथ एक भाव में ही रहते हैं, राधा कृष्ण एक होके युगलरूप में रहते है’ । सारी दुनिया में भोलापन और सरलता का आभास उनके सदैव एक साथ होने से ही होता है l
“सेहि राधाकृष्ण पाइबा पाइँ,नारी रूप हुए भकत देही ।
आत्नाकु भकत नारी रूपरे, समर्पण करे कृष्ण पय़रे |
सेहि मन्त्र गोटि नित्य़ भजिलि, नित्य़ राधाकृष्ण सेबा पाइलि ।” – कल्पटीका,पृष्ठ 82
अर्थात, यही युगल रूप राधाकृष्ण को प्राप्त करने के लिए प्रभु के परम भक्त नारी भाव ग्रहण करते है और अपने आत्मा को एक नारी के भाव से भगवान श्री कृष्ण के चरणों में समर्पित करते है । इसी एकाक्षर मंत्र का नित्य भजन करके राधाकृष्ण की नित्य सेवा भक्त प्राप्त करते है।
माधव नाम कैसे एकाक्षर हुआ
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, मूल प्रकृति 'मा' (राधा) के स्वामी (धव) ही "माधव" कहलाते हैं। अर्थात माधव में ही राधा और कृष्ण दोनों सम्मिलित है |परम पूजनीय पंडित काशीनाथ मिश्र जी जिन्होंने मालिका का अनेक स्थानों पर प्रचार किया है, वह “माधव” एकाक्षर मंत्र का प्रचार कर रहें है और इसमें अनंत कोटि ब्रह्माण्ड की शक्ति समाई हुई है।
नाम जप ही भक्ति का सबसे प्रभावशाली मार्ग है और इसका सर्वोच्च उधारण राम भक्त हनुमाजी के अलावा और कोई हो ही नहीं सकता। “राम” जप से ही उन्होंने भक्ति की पराकाष्ठा प्राप्त की और प्रभु श्रीराम के आशीर्वाद से भक्त से भागवान का पद प्राप्त किया।
भक्ति मार्ग में निर्मल हृदय, श्रद्धा और वैराग्य का महत्व
अब निर्मल हृदय, श्रद्धा और वरैाग्य; इन तीनों तत्वों को समझना अति आवश्यक है, ताकि यह स्पष्ट रूप से ज्ञात हो जाए की यह तीनों तत्व कैसे भगवत प्राप्ति में सहायक हैं और “माधव” जप से इन्हें कैसे प्राप्त किया जा सकता है।
निर्मल हृदय
भगवान का साक्षात्कार तभी सभंव है जब हमारा हृदय पणू रूप से शुद्ध हो। यदि मन में अहंकार, क्रोध, लोभ और मोह जसैे विकार भरे होंगे, तो भगवान की कृपा प्राप्त करना कठिन हो जाता है। जब हम नियमित रूप से नाम का स्मरण करते हैं, तो हमारे भीतर छिपी नकारात्मकता धीरे-धीरे नष्ट होने लगती है।
यह प्रक्रिया ठीक वैसे ही होती है जैसे नदी का निर्मल जल गदंगी को बहा ले जाता है। माधव जप हमारे मन को शांत, सरल और निष्कपट बनाता है, जिससे हम भगवान के सानिध्य के योग्य बनते हैं।
श्रद्धा
श्रद्धा ही वह बीज है जिससे भक्ति रूपी वृक्ष विकसित होता है। बिना श्रद्धा के कोई भी साधना फलदायी नहीं हो सकती। कई लोग भगवान के अस्तित्व पर संदेह करते हैं या केवल सांसारिक लाभ के लए भक्ति करते हैं, लेकिन सच्ची श्रद्धा वहीं होती है, जो निःस्वार्थ और अटूट है।
“माधव” जप करने से हमारी श्रद्धा स्वतः बढ़ती है। जब कोई साधक इस नाम का नीयमित रूप से जाप करता है, तो वह ईश्वरीय चमत्कारों का अनभवु करने लगता है। ऐसे अनुभव उसकी श्रद्धा को और मजबूत बनाते हैं और उसे अध्यात्मिक मार्ग पर दृढ़ता से आगे बढ़ने के लए प्रेरित करते हैं।
वैराग्य
हमें कोई त्याग या संयास लेने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि वैराग्य मन की वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति संसार के नाशवान सुखों को त्यागकर शाश्वत आनदं की ओर बढ़ता है। “माधव” जप करने से धीरे-धीरे हमारे भीतर वैराग्य जाग्रत होने लगता है। जब मनष्यु बार-बार “माधव” का जप करता है, तो उसकी आसक्ति सांसारिक वस्तूओं से हटकर भगवान की ओर हो जाती है।
माधव जप के लाभ
"माधव" जप करने से मिलने वाले आध्यात्मिक लाभ इस प्रकार हैं –
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आध्यात्मिक शुद्धि – निरंतर जप से अंत:करण शुद्ध होता है और भक्ति की भावना प्रबल होती है l
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मानसिक शांति – इसकी ध्वनि से जो तरंगें उत्पन्न होती हैं वे मन और शरीर पर सकारात्मक प्रभाव डालती हैं, जिससे तनाव, चिंता और अवसाद दूर होते हैंl
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रक्षा कवच – कठिन परिस्थितियों में “माधव” का जप व्यक्ति को बाहरी और आंतरिक कष्टों से बचाता है।
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भाग्य परिवर्तन – यह जप भाग्य और कर्म को बदलने की शक्ति रखता है।
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रोगों से राहत – कई भक्तों ने अनुभव किया है कि निरंतर “माधव” जप से उन्हें असाध्य रोगों से भी मुक्ति मिली है।
क्या कठिन समय शुरू होने वाला है ?
29 मार्च 2025 को मीन-शन के चलन के कारण ग्रहों की स्तिथि में भारी बदलाव होगा। भविष्य की इन विकट परिस्थितियों से बचने का एकमात्र उपाय “माधव” जप है। यह न केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान करेगा, अपितु व्यक्ति को इन भयकंर आपदाओं से बचाने के लिए एक सुरक्षा कवच की तरह काम करेगा।
पचंभतू प्रलय (प्राकृतिक आपदाएँ)
वर्तमान में जलवायु परिवर्तन, ग्लेशियरों का पिघलना, समुद्री जलस्तर में वृद्धि, और भूकंप जैसी आपदाएँ लगातार बढ़ रही हैं। भूकंप और बाढ़ से हजारों लोग बेघर हो जाते हैं, जगंल की आग और तूफान करोड़ों की संपत्ति को नष्ट कर देते हैं। वैज्ञानिक और पर्यावरण शास्त्रज्ञ इस बढ़ते सकंट को नीयंत्रित करने के लिए विभिन्न उपायों की तलाश कर रहे हैं, लेकिन आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह सब हमारे कर्मों का फल हैं।
“माधव” जप इन आपदाओं के प्रभाव को कम कर सकता है,क्यों कि यह दिव्य ऊर्जा को संतुलित करता है और व्यक्ति के चारों ओर एक सुरक्षा कवच बनाता है, जिससे वह इन आपदाओं से सुरक्षित रहता है।
विश्व युद्ध
भविष्य मालिका में उल्लेख किया गया है कि एक भीषण विश्व युद्ध होगा, जो संपूर्ण मानवता को सकंट में डाल सकता है। वर्तमान में विश्व की परिस्तिथियों को देखें तो कई देशों के बीच तनाव लगातार बढ़ रहा है।
द्वापर यगु में जब महाभारत युद्ध हुआ था, तब भीम ने माधव (श्रीकृष्ण) का स्मरण किया और उन्हें प्रभु ने युद्ध में अजेय बना दिया। इसी तरह, यदि हम आने वाले कठिन समय में “माधव” का जप करें, तो ईश्वर हमें कसी भी युद्धजनित सकंट से सुरक्षित रख सकते हैं।
महामारियाँ और भयकंर रोग
बीते वर्षों में हमने गंभीर महामारियों का सामना किया है, जसैे की कोविड-१९, इबोला, स्वाइन फ्लु इत्यादि, लेकिन भविष्य में ६४ प्रकार की खतरनाक महामारियाँ फैलेंगी, जिनका न तो कोई टीका होगा और न ही कोई कारगर चिकित्सा उपाय।
भविष्य मालिका के अनुसार, इन महामारियों से बचने का एकमात्र तरीका अध्यातमिक और मानसिक शद्धता है। जब कोई व्यक्ति “माधव” एकाक्षर मंत्र का जप करता है, तब शरीर में सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है, जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। सन्तों और भक्तों ने इस नाम की शक्ति को अनभवु किया है। ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं, जहाँ साधकों ने केवल नाम-स्मरण के बल पर असाध्य रोगों से मुक्ति पाई है।
नाम-जप से अजपा तक की यात्रा ।
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शरुआत में साधक को जप के लए प्रयास करना पड़ता है। यह प्रारंभिक अवस्था होती है, जहाँ ध्यान केंद्रित करने में कठीनाई होती है। लेकिन निरंतर अभ्यास से मन धीरे-धीरे स्थिर होने लगता है।
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धीरे-धीरे: जब व्यक्ति नियमित रूप से “माधव” जप करता है, तो उसका हृदय और मन इस दिव्य ध्वनि में रमने लगता है। तब जप केवल एक साधना न रहकर जीवन का एक अभिन्न अगं बन जाता है।
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अतं में (अजपा अवस्था): जब साधक “माधव” एकाक्षर मंत्र में परीू तरह लीन हो जाता है, तब जप स्वतः होने लगता है। इसे ही अजपा जप कहा जाता है, जिसमें व्यक्ति का मन हर समय “माधव” नाम से गूंजता रहता है।
माधव नाम जप का प्रत्यक्ष अनुभव
कुछ भक्तों ने अनुभव किया है कि माधव जप के प्रभाव से —
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बड़ी दुर्घटनाएँ टल गईं।
- जीवन के कठिन समय में मार्गदर्शन मिला।
- स्वप्नों में दिव्य संकेत प्राप्त हुए।
- बीमारियाँ ठीक हो गईं।
- आत्मिक शांति और आनंद की अनुभूति हुई।
निष्कर्ष
माधव जप के लिए कोई नियम नहीं हैं, और यह समय या स्थान से भी बंधा नहीं है। यदि मनुष्य माधव नाम को खाते या सोते समय भी स्मरण करता है, तो वह प्रभु प्रेम प्राप्त कर सकता है। प्रभु ने अपने भक्तों को अपने तक पहुँचने के लिए नाम-जप जैसा सहज और सरल मार्ग प्रदान किया है। अब यह हम पर निर्भर है कि हम किस राह पर चलते हैं।
अनंत कोटि विश्व ब्रह्मांड के नाथ के नाम की महिमा को एक लेख के सीमित शब्दों में समेट पाना असंभव है और इसकी सुंदरता और प्रभाव को हमें स्वयं अनुभव करना होगा।
निकट भविष्य में आने वाली परिस्थितियों में माधव नाम का निरंतर जप और पूर्ण समर्पण हमें असंख्य विपदाओं से बचा सकता है। “माधव” नाम लेते-लेते प्राण त्याग दिए जाएँ, तो भी सदगति प्राप्त होगी और अगला जन्म सुधर जाएगा। इसके अतिरिक्त, यदि त्रिकाल संध्या (सुबह, दोपहर, शाम) और श्रीमद्भागवत का नियमित पाठ किया जाए, तो इसका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।